सबका, मैं !
एक संभाला हुआ शै,,
एक बिखरा हुआ क्षय
सुनो तो मुझे, यार
की यह हूँ मै !
क्षितिज पे पसरा उदासीन उदय
फुले हुये सीने में, झिझकता ह्रदय
देखो तो मुझे , यार
की यह हूँ मै !
सिमटे हुए पन्नौ में वर्णो का लय
साहस की और में छुपा भय
पढ़ो तो मुझे यार,
की यह हूँ मैं !
अबतलक न सुना , अंदरूनी आहटों का कलय
अबतलक न देखा , अंतर्मन का प्रलय
अबतलक न पढ़ा, ये बंद विषय
की मिलो तो मुझसे यार
की यह हूँ मैं !
सबका, मैं !
विक्रम कुमार सोनी