सबका आज ज़मीर दिखाने
आया हूँ महफ़िल में सबका आज ज़मीर दिखाने
किस तरह सब खालीपन से तन्हा है पीर दिखाने
छूते नहीं हमारे पाँव आजकल जमीं को देखिये
दिल रियासत हम इश्कवालो की जागीर दिखाने
सोचता हूँ आईंना एक जमीं पर भी लगा दूँ आज
आसमान को धरती से मिल्न की तकदीर दिखाने
आजकल शहर में आ गया मशीनों का राज मियां
मरी इंसानियत को जिस्मों से आज शरीर दिखाने
जिस्म की नुमाइश कर डाली चंद पैसों की खातिर
बेच डाला जिन्होंने ज़मीर उनकी तस्वीर दिखाने
उड़ चला मैं परिंदा बन अशोक चाँद को पाने को
आ गये नामचीन मुझे सरहदों की लकीर दिखाने
अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से
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