सफीना
क्यों ग़मों मे बशर डूबता जा रहा है
फासला इंसानों में बढ़ता जा रहा है
मुल्क का जाने क्या अन्जाम होगा
नेतागिरी का पारा चढ़ता जा रहा है
कोई इसकी मुराद न हो पाएगी पूरी
जो पाँव चादर से निकला जा रहा है
तहजीब नाकाबिले-तारीफ़ हो रही है
पानी सरों से ऊपर उठता जा रहा है
संभल संभल कर रखना हर कदम
ये कही का कहीं फिसला जा रहा है
आसमां छूने की तमन्ना में हरेक
नीव का पत्थर उखड़ता जा रहा है
कश्तियाँ किनारे पहुचाने ‘मिलन’
तूफानों में सफीना घिरा जा रहा है !!
मिलन “मोनी” १३/4/२०१७