हाथ से मानव मल उठाने जैसे घृणित कार्यो को छोड़ने की अपील करती हुई कविता छोड़ दो।
छोड़ दो
आधुनिकता के
दौर में
नित नई-नई
खोज हो रही है।
कभी मंगल
तो
कभी चाँद
पर बसने की
टोह हो रही है।
ये सब
देखते हुए भी
तुम –
नही सीख रहे हो,
अभी भी
जीवन जी रहे हो
पुराने ढर्रे से।
क्यों नही छोड़ना
चाहते हो ?
उन सभी गन्दे
कामों को
जो –
तुम्हारी आने वाली
नस्लों को शर्मिंदगी भरा
जीवन जीने को मजबूर
कर रहे है।
छोड़ दो,
त्याग दो,
मृत मवेशी उठाना,
चमड़ा उतारना,
सिरों पर मैला ढोना,
ज़हरीली गैसों से भरे
सीवरों में उतरने
जैसे- निंदनीय काम,
ताकि
तुम्हारी आने
वाली नस्लें व पीढ़िया
स्वाभिमान से सर
उठाकर जी सके।