सफ़र
महव ए सफ़र –
उनकी चाहत के…. असर में रहते हैं ।
वो नादाँ…. महव ए सफ़र में रहते हैं ।।
हम जानते हैं… अदब की अहमियत ।
हमारे मिसरे.. हमेशा बहर में रहते हैं ।।
वो करते हैं अक्सर अनदेखा हमको ।
शाम ओ सहर जो मेरी नज़र में रहते हैं ।।
इश्क़ को समझ रहे खेल गुड्डे-गुड़ियों का ।
कौन हैं वो ?……..कौनसे दहर में रहते हैं ।।
सबसे छिपा कर रक्ख़ा था “काज़ी ” उनको ।
सिर्फ़ ओ सिर्फ़ मिरे दिलो-जिगर में रहते हैं ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ीकीक़लम