सफ़र को यादगार बना जाना !
सफ़र को यादगार बना जाना !
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चला जा रहा हूॅं….
चला जा रहा हूॅं….
सफ़र में बस यूॅं ही ,
चला ही जा रहा हूॅं !!
ना कोई मंज़िल है ,
ना ही कोई ठिकाना !
बस यूॅं ही चल रहा हूॅं ,
बस, चलते ही है जाना !!
माना कि मैं अनजान हूॅं ,
फिर भी ना मुझे घबराना !
बस, अपने बुद्धि-विवेक से ,
बस, काम है सदा लेते जाना !!
राह तो कठिन होंगे ही….
राहों में कंटक मिलेंगे ही….
सारी उलझनों का हल करके ,
मंज़िल की ओर ही बढ़ते जाना !!
एक अज्ञात सा डर है मन में ,
उस डर को झट से दूर भगाना !
अटल , अडिग पथ पर रहते….
धीरे – धीरे है बढ़ते चले जाना !!
इक खौफ़ का जो मंज़र है….
उस दृश्य से नज़रों को हटाना !
बस, सकारात्मक सोच पे ही ,
अरमानों को सजाते है जाना !!
सफ़र में राही मिलेंगे बहुत से….
सही-गलत को पहचानते जाना !
इक्के-दुक्के ही होंगे दिल के सच्चे ,
बस, उन्हें ही गले से लगाते जाना !!
अंज़ाम चाहे जो कुछ भी हो….
कदम खुद के ना कभी डगमगाना !
हर कदम सोच-समझकर, बढ़ाकर…
सुहाने सफ़र का आनंद लेते जाना !!
फिर एक दिन मनचाहा मंज़िल पाकर ,
हर दिन इस सफ़र को याद करते जाना !
मंज़िल पाकर , हर सपनों को साकार कर ,
सचमुच, इस सफ़र को यादगार बना जाना !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 10 अक्टूबर, 2021.
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