सफ़रनामा
अम्माँ के मुँह सुना
ज़िन्दगी का सफ़रनामा
याद नहीं आता ।
सतरंगी शिशु सपन में
नींदिया में मुस्कुराना
याद नहीं आता ।
ऊँघती हाँथों से
मेरे माथे का थपकाना
याद नही आता ।
सोये हँसते मुझे
होंठों का बुदबुदाना
याद नहीं आता ।
आँगन देहरी रेंगते
गीरकर उठ जाना
याद नहीं आता ।
चोरी-चुपके मुँहमें
मिट्टी ले आना
याद नहीं आता ।
चॉदी के कटोरे में
चन्दा का बुलाना
याद नहीं आता ।
अंश नेवाला चुपके से
मुँह में आ जाना
याद नही आता ।
बादल गर्जने से
आँचल में छुप जाना
याद नहीं अाना ।
फिसलकर तलैया से
बचकर आ जाना
याद नहीं आता ।
मेले में भटका फिर
घर को आ जाना
याद नहीं आता ।
कंधे पर बैठा
शहर घूम आना
याद नहीं आता ।
जंगल नर नरक
नगरी में खो जाना
याद नही आता ।
बाट तकती बूढी आँखों की
चमकती पुतली को –
शहर से घर लौट अाना-
याद नहीं रहता ।।