सफ़रनामा
सफ़रनामा
यह वहम सदा रहा कि हम तो अपने घर में हैं
है मगर सच्चाई की युगों से सफर में हैं
पांव का चलना ही तो
केवल है सफर नहीं
नाव का हिलना ही तो
केवल है सफर नहीं
सोच में हो रास्ता
वह भी तो सफर तो है
नाव की तैयारियां भी
तो इक सफर तो है
उम्र करती है सफर
हमारी जिस्म जान से
देख तो हम बेखबर
हमारी जिस्म जान से
इक गली से है जुड़ी
कितनी और भी गली
चौखटों के पार तो
राहें और भी मिलीं
यह तख्तो ताज शोहरतें
और सभी दौलतें
वक्त के समुंदरों से
मिलीं यह इनायतें
जिस तरह आई है पास
पानियों में बहके ये
उस तरह हीं जाएंगी
पानियों में बहके ये
है हजार हजार मोड़
इक इक पड़ाव पर
हमने क्या लगाया दांव
हम ही रहे दांव पर
होंगे कहीं और कल आज हम तेरे शहर में हैं
यह वहम सदा रहा कि हम तो अपने घर में हैं
गौतम कुमार सागर