सफ़रनामा: मित्रता के रंग
सफ़रनामा: मित्रता के रंग
कहते हैं, जीवन एक सफर है, और इस सफर में जो साथी मिलते हैं, वे हमारे अनुभवों को रंगीन बनाते हैं। मेरे सफर में भी ऐसे मित्र रहे हैं, जिन्होंने हर कदम पर साथ दिया। लेकिन जब यह पंक्तियां पढ़ता हूं:
“कल कोई मुझको याद करे,
क्यों कोई मुझको याद करे,
मसरूफ ज़माना मेरे लिए,
क्यों वक्त अपना बर्बाद करे।”
तो सोचता हूं, क्या हमने अपने मित्रों के साथ बिताए उन लम्हों को यादगार बनाया? क्या हमने अपने रिश्तों में वो गहराई दी, जो समय के साथ फीकी न पड़े?
मित्रता केवल हंसी-ठिठोली तक सीमित नहीं होती। यह वो अनकहे वादे हैं, जो बिना कहे निभाए जाते हैं। वो कंधा है, जो हर मुश्किल घड़ी में सहारा देता है। जब हम साथ थे, तो हर दिन एक नई कहानी लिखी। वो चाय की दुकान पर घंटों की बहस, वो छोटे-छोटे सपने जो हमने साथ देखे, और वो बड़े-बड़े डर जो हमने एक-दूसरे के साथ बांटे।
मुझे याद है, कैसे हम छोटे-छोटे बहानों से एक-दूसरे के पास पहुंच जाते थे। किसी के घर देर रात तक पढ़ाई का नाटक करना, और फिर आधी रात को ठहाकों में गूंज उठना। वो क्रिकेट के मैच, जहां हार-जीत से ज्यादा दोस्ती की जीत होती थी। वो जन्मदिन की पार्टियां, जो कभी समय पर नहीं शुरू होती थीं। और वो अनगिनत अनकही बातें, जो सिर्फ हमारी आंखों ने समझीं।
लेकिन समय के साथ, हम सब अपनी-अपनी राहों पर निकल पड़े। मसरूफियत ने हमें घेर लिया। फिर भी, हर बार जब अकेले में बैठता हूं, तो वो चेहरे, वो आवाजें, वो हंसी-ठिठोली, सब याद आती है। शायद यही मित्रता का असली मतलब है।
मित्रता का रिश्ता समय से परे है। यह वो बीज है, जिसे हम अपने दिल में बोते हैं, और जब भी इसे यादों के पानी से सींचते हैं, यह फिर से खिल उठता है।
तो आज जब यह कविता पढ़ता हूं, तो सोचता हूं, क्या हम अपने मित्रों के लिए इतना खास बन पाए हैं कि जब वे अकेले हों, तो हमें याद करें? क्या हमने अपने रिश्तों में वो गहराई छोड़ी है, जो उन्हें मुस्कुराने पर मजबूर कर दे?
सफर चाहे कितना भी लंबा हो, अगर मित्र साथ हों, तो हर पड़ाव सुंदर हो जाता है। और अगर एक दिन कोई मुझे याद करे, तो मैं यही चाहूंगा कि वो मेरे साथ बिताए लम्हों को मुस्कुराते हुए याद करे।
क्योंकि दोस्ती वही है, जो वक्त की धूल से नहीं मिटती। यह हमारे दिलों में बसी रहती है, हमेशा के लिए