सफलता की कुंजी (पार्ट -2)
सफलता की कुंजी
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कर मन अभिभूत हे प्राणपति !
तू जीवन सफल फिर कर पाएगा,
हो आत्मरति, मत कर अभिनय,
जन्मों का पाप मिटा पाएगा।
कर अभिज्ञान पथ उजियारा,
अपने अभीष्ट का कर वंदन।
जीवन समर की तप्तभूमि में ,
विजय आस्वादन कर पाएगा ।
मत हो बंधित अपकर्मों से,
नित्य अभीष्ट का ध्यान तू कर।
बड़ी दुष्कर है जग की रचना,
तू इसको भेदन कर पाएगा।
मन व्यथित है क्यों अन्तर्द्वन्दों से,
सोचो मत अतीत की छाँव तले।
उपवन में सुन्दर फूल खिला,
मन हर्षित-हर्षित हो जाएगा।
पल भर जो तेरा ध्यान हटा,
फिर भूल हुई, अंधकार घिरा ।
बुरे व्यसनों के जाल में फंस तुम ,
क्या मंजिल हासिल कर पाएगा?
सोचो मत कुछ भी,क्षण व्यतीत किए,
सुमिरन कर निर्मल प्राणप्रिये !
ले वरदान अपराजित होने का,
तू विश्वविजयी फिर हो पाएगा ।
आकुल अभिशप्त इस धरती को,
तू फिर से स्वर्ग बना पाएगा।
कर मन अभिभूत हे प्राणपति !
तू जीवन सफल फिर कर पाएगा।
मौलिक एवं स्वरचित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०२ /०८/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201