सफलता का श्रेय
सफलता का श्रेय
किसी एक *खुश *नसीब को मिलता है,
असफलता में हर बदनसीब जिम्मेदार.
सफलता में कौन आधार,
कूटनीति मसालेदार,
वरन् लोकतंत्र की हार,
संविधान में हर जन-मानुष की
हर समस्या का समाधान है,
विवेक जगने न दिया,
इन सत्ता लोलुप लोगों ने,
साधु संत डूबा है,
गृहस्थ जीवन और व्यवसाय में,
भय दिखा कर काम क्रोध मद लोभ के,
खुद लिप्त पाये जाते है,
एक गांव बसे, जितने वर्गफल में,
उतने क्षेत्रफल में तो ये लोग,
अपना कॉर्पोरेट चलाते हैं !
हम गृहस्थी कमाते हैं,
ये लोग ठाठ से खाते हैं,
हम पाप-आत्मा और ये,
खुद पुण्य-आत्मा कहलाते हैं.
हंस महेन्द्र सिंह