सफर पे निकल गये है उठा कर के बस्ता
सफर पे निकल गये है उठा कर के बस्ता
चल पड़े है कदम जहां ले चले रस्ता
टिकट कटा कर बैठ गये है अब तो हम गाड़ी में
देखा जाएगा भाई जो भी होगा अब रजधानी में
दो जोडी कपड़े है और रखी है कुछ पुस्तक
आंखों में कुछ सपने लेकर आ गये हम देने दस्तक
कठिनाई जो भी होगी हम उससे लड़ जाएंगे
कदम नहीं कभी हमारे लड़खड़ाएंगे
कहने दो जो कहते हैं तुम से ना हो पाएगा
मन के भीतर तो सच ये तुम से ही हो पाएगा
सफर पे निकल गये है उठा कर के बस्ता
चल पड़े है कदम जहां ले चले रस्ता
टिकट कटा कर बैठ गये है अब तो हम गाड़ी में
देखा जाएगा भाई जो भी होगा अब रजधानी में
सुशील मिश्रा (क्षितिज राज)