मुसाफिर हो तुम भी
सफर पर हो तुम भी
सफर पर हैं हम भी।
किसी का नहीं है,
लफानी बसेरा ।
मुसाफिर हो तुम भी
मुसाफिर हैं हम भी।
मुकम्मल ठिकाना,
न तेरा न मेरा।
चलो गुफ्तगूं चार,
करते चले हम,
हैं रातें कठिन,
राह भी है नहीं कम।
मुसलसल रहे चलते
संग संग अगर यूं ,
मिले जल्दी मंजिल,
हो जल्दी सवेरा।
मुसाफिर हो तुम भी
मुसाफिर हैं हम भी।
मुकम्मल ठिकाना,
न तेरा न मेरा।
भले राहें इक सी
सुनो चलने वाले,
पर मंजिल अलग है
हमारी तुम्हारी।
किसी मोड़ पर
हो जुदा कारवां जब,
रह जाए अधूरी
कहानी हमारी।
तेरे साथ हैं हम,
एक दूजे से कह लें।
घड़ी दो घड़ी तो,
मुहब्बत से रह लें।
बदा होगा जो भी,
जो होना है होगा।
न भूलें कभी,
उस खुदा का निहोरा।
मुसाफिर हो तुम भी
मुसाफिर हैं हम भी।
मुकम्मल ठिकाना,
न तेरा न मेरा।
सतीश सृजन, लखनऊ,