सफर जीवन का चलता रहे जैसे है चल रहा
सफर जीवन का चलता रहे जैसे है चल रहा
कुछ यूं जीवन का फलसफा है बस चल रहा।
…बस चल रहा।
है हर घड़ी यूंही निकल रही जैसे निकल रहा
उम्र का हर क्षण दिन ब दिन रेत की तरह।
…कुछ इस तरह।
चल पड़े है हम बन मुसाफिर इस एक राह,
को ही पकड़ लिया तो छोड़ना क्यों बेवजह।
…छोड़ना क्यों बेवजह।
कर रहे हैं कोशिश पाने की मंजिल इस तरह
डूबते को चाहिए हो एक सहारा जिस तरह।
…कुछ इस तरह।
सर जुनून है ये जीतने का कुछ इस तरह,
जैसे बहती नदी वेग से सागर तरफ जिस तरह।
सागर तरफ जिस तरह।।
चाहिए उस ईश्वर का साथ हमें इस तरह,
केवट का है नाव से रिश्ता भी जिस तरह।
…रिश्ता भी जिस तरह।।