सफर की यादें
#दिनांक:-5/5/2024
#शीर्षक:- सफर की यादें
आह! बड़े दिनों बाद उसका फोन आया,
बहुत वक्त बाद, तेरे चाहत का पैगाम आया !
भावविह्वल हो, मैं तुम्हें सुन रही थी ,
पुराने सपने, नये तरीके से बुन रही थी !
मैं होकर भी नही थी फोन पर ,
मंत्रमुग्ध थी उसके टोन पर !
सदियों पीछे, अपने को ढूंढ रही थी ,
‘प्रतिभा’ नजर आ रही थी,,
पर ,, अपरिचित सी मुझे देख रही थी !
कसकर जकड़ रखा हैं उसने बाहों में ,
फूल ही फूल बिछे हैं राहों में !
ख्वाइशे पूरी करने की गुहार ,
बार-बार , प्यार का इजहार !
मना ना करना प्रिये, मेरी मनुहार !
हर राहों को आसान बनाएँगे प्रिये,
किये थे जो वादा निभाएगे प्रिये !
मेरी मीठी शाम लौटाओ ,
फिर से मेरी जिंदगी बन जाओ…….!
पीछे से माँ , माँ , की आवाज से ध्यान टूटा ,
ध्यान के साथ अरमान टूटा …!
कहाँ गुमनाम थे अब तक ,
तीर सवाल था मेरा ,
तुमने जवाब दिया, आत्मग्लानि से भरकर ,,,
जब तक पास था, तेरा एहसास नहीं कर पाया,
बाहों में भरकर भी, तुम्हें अपना नहीं पाया 😔
दूर होकर जाना, तुम मेरी बंदगी हो ,
तुम्हीं मेरी सुकून-ए-जिन्दगी हो …!
आवाज रुआंसी थी मेरी, पर बुलंद बोली,,,
समय ने, समय को, समय पर, समय ना दिया ,
फिर समय ने, समय को, रुखसत कर दिया !!
आह! आज भी वक्त, बे- वक्त बहुत पीछे मुझे ले जाती है,
यादें, सफर की यादें खींच कर रुऑंसी कर जाती है |
(स्वरचित, मौलिक रचना)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई