सफर की महोब्बत
सफर ऐसा की मंजिल का पता नहीं
मोहब्बत मे मुझे महबूब का पता नहीं
खुदा मुकमल हो तो सफर में वह मोड़ मिले
जहाँ मेरे महबूब का मुझको भी घर मिले
सफर में महबूब को कुछ बोल नहीं पाया
लफ्ज मे दिल के खोल भी नहीं पाया
उसे भी महोबत सच मे थी मुझसे तो
दिल के लफ्जो को समझ क्यो नहीं पाया
हमारा यह सफर यूही गुजर गया
महोब्बत मे वो ! कुछ ना कह पाया
लफ्जो से ! मे भी कुछ नहीं कह पाया
दिल का अरमां मे दिल मे रह गया
अनिल चौबिसा
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