सफरनामा
एक हाथ लेती है
एक हाथ देती है
दोस्त है या दुश्मन
समझने नहीं देती है
कभी इतना खो देते हैं
सफर में चलते-चलते
देर लग जाती है एक
ठोकर से सम्भलते
कभी अनहद दे देती है
चमत्कारी पीर की तरह
खिल जाती है दिल की
कली अबीर की तरह
कभी बरसती है सुख
की बदली की तरह
कभी दरारें चुभती है
बंजर ज़मीन की तरह
अभिमान की बरखा
में इतने न भीग जाना
कि एहसासों की ज़मीन
बंजर ही हो जाये
किसी और की पीड़ा
में नयन नीर न बहा सकें
किसी की खुशी में घड़ी भर
भी मुस्कुराया न जाये
बन सको तो एक एहसासों
की पावन गंगा बन जाना
अपने अमृत से दिलों
के मैल को धो देना
विषैले विचारों का दंश
नीलकंठ बन पी जाना
विचारों के मंथन में
पहले विष ही निकलेगा
प्रेम है वो ताकत जो
उसे अमृत में बदलेगा
प्रेम की शक्ति के आगे
हर दुश्मन भी झुकेगा
बहता दरिया है यह
न रुका है, न रुकेगा
#किसानपुत्री_शोभा_यादव