सपनों के आगे कल्पना की उड़ान
दृढ़ संकल्पित जन के राह में, बाधा कोई न जन पाए।
अवरोधों को पार करे वही, लक्ष्य भेदने जो तन जाए।।
तन दुर्बल तज हीन भावना, कायरता की छोड़ निशानी।
विजयी वही रणक्षेत्र में होते, जो ज़िद्दीपन मन लाए।।
एक अछूती कोमल काया, अकांछाओं के दौड़ लगाती।
छोड़ ज़मीनी सतह पंख बिन, निल गगन में जो उड़ जाती।।
विस्मित दुनियां नाम वो पहला, गाती जिसकी अमिट कहानी।
एक कल्पना करे सुनिश्चित, पन्ने कथाओं के मुड़ जाती।।
लक्ष्य चुनी कुछ ज्ञान चुनी, मोंटू ने कल्पना नाम चुनी।
धरती वासी हो कर के भी, व्योम मे अपना धाम चुनी।।
साहस की पराकाष्ठा ये, जहा चाह रही वहा राह रही।
कर न सकी जो तब महिला, आगे बढ़ वह काम चुनी।।
अंतरिक्ष के लिए बनी थी वो, जा अनंत विलीन हुई।
सुनकर घटनाक्रम कुछ ऐसा, हर आँखे गमगीन हुई।।
नम आंखों से देते विदाई, इस खगोल की देवी को।
खला है इसका जाना लेकिन, हर दिल ये आसीन हुई।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०९/०३/२०२२)