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2 May 2024 · 1 min read

सपनों की खिड़की

सपनों की खिड़की से जो
करते दुनिया में झांका
पड़ जाता उनके उर में
जब वे सोते तब डाका

सपनों की खिड़की से भी
दिखती दुनिया बहुरंगी
दिख जाते पृथुल पयोधर
दिखती तरुणी तन्वंगी

सपनों की खिड़की न्यारी
जाने क्या क्या दिखलाती
नाना विधि भंगुर दृश्यों
की अविरल झड़ी लगाती

सपनों की खिड़की से ही
मैं झूले पर चढ़ जाता
परिदृश्य न टिकता पलभर
मैं गीत नहीं गा पाता

सपनों की खिड़की गायब
होने में देर न लगती
सपनों की खिड़की मनहर
मानो मन को ही ठगती

मेरे प्रिय मित्रों! मानो
कहता सोलह आने सच
ज़िन्दगी जियो जीवट से
सपनों की खिड़की से बच

महेश चन्द्र त्रिपाठी

Language: Hindi
56 Views
Books from महेश चन्द्र त्रिपाठी
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