सपनों की खिड़की
सपनों की खिड़की से जो
करते दुनिया में झांका
पड़ जाता उनके उर में
जब वे सोते तब डाका
सपनों की खिड़की से भी
दिखती दुनिया बहुरंगी
दिख जाते पृथुल पयोधर
दिखती तरुणी तन्वंगी
सपनों की खिड़की न्यारी
जाने क्या क्या दिखलाती
नाना विधि भंगुर दृश्यों
की अविरल झड़ी लगाती
सपनों की खिड़की से ही
मैं झूले पर चढ़ जाता
परिदृश्य न टिकता पलभर
मैं गीत नहीं गा पाता
सपनों की खिड़की गायब
होने में देर न लगती
सपनों की खिड़की मनहर
मानो मन को ही ठगती
मेरे प्रिय मित्रों! मानो
कहता सोलह आने सच
ज़िन्दगी जियो जीवट से
सपनों की खिड़की से बच
महेश चन्द्र त्रिपाठी