सपनों की ओर
हर पल दिल में एक चाह होती है
मंजिल पाने की आह होती है
करते हैं हौसला
मंजिल तक पहुँच पाएंगे,
फिर मंजिल पथ पर चलने लगते हैं
मिली कामयाबी एक तो
हौसले बुलंद हो जाते हैं
कभी रोड़ों को देखकर सोच जाते हैं
क्या सपनो को पूरा कर पाएंगे
तब दिल से एक आह निकलती है
हाँ, बस चाह निकलती है
कभी सोचते हैं
राह मुश्किल है
फिर इतिहास याद करते हैं
मांझी को दिल में रखते हैं
फिर दिल की चाह कहती है
होती नहीं राहें मुश्किल
मुश्किल चलने वाले होते हैं
लभ्य में रोड़े तो आते हैं
पर रोड़ों को देखकर
लक्ष्य नहीं बदले जाते हैं
यह उम्मीद जगा कर ही हम
राह में चल पड़ते हैं
काँटों को रौंद कर
मंजिल हासिल कर लेते हैं।
रचनाकार – नरेश मौर्य