सपने
.सपने
कुछ सपने नहीं होते कभी पूरे
और रहते हैं सदा जवां
नहीं होते कभी बूढ़े
बस रख जाते हैं गिरवी समय के हाथों
पर आ जाते हैं जरा अच्छा समय देख कर
ब्याज के साथ अपना मूल माँगने
खङे हो जाते हैं मन की ड्योढ़ी पर जरा खुशी देखते ही
देने लगते हैं दस्तक कहीं बहुत समय से बंद दरवाजे पर
हाँ नहीं खोल पाते सांकल अपनी परंपराओं की
और नहीं करपाते स्वागत वर्षों से इंतजार में खड़े इन मेहमानों का
और फिर एक बार फिर अनसुना कर देते हैं कुछ मधुर आवाजों को
और खो जाते हैं जिंदगी की जद्दोजहद की भीड़ में
रह जाते हैं फिर वही कुछ कुवांरे सपने
जो ना कभी कर पाये पाणिग्रहण जिंदगी से
पर नहीं हुये बूढ़े
रहे सदा जवाँ कुछ सपने
जो होते नहीं पूर