सपने
इन आँखों में सपने है कुछ नए से,
कुछ विद्रोही से सपने,
ढर्रे से अलग,लीक से हटकर,
जो स्वीकारे नहीं जायेंगे,
दिखा कर समाज का डर,
हर हाल में तोड़े जायेंगे,
मरोड़े जायेंगे,
पर अब आँखों को यह नहीं है मंजूर,
कोई मजबूरी नहीं कर सकती अब मजबूर,
सपने मूर्त आकार लेंगे, उठ खड़े होंगे,
हर विद्रोह के समक्ष,
समाज तुझे ही बदलना होगा,
स्वीकार करना होगा इन विद्रोहियों को,
यथावत, यथासम्भव,
क्योकि यही बदलेंगे इतिहास,
देंगे तुझे अमरत्व, यथावत……..