सपने
आँखों में बनते हजार सपने देखे हैं।
कुछ सजते तो कुछ बिगड़ते देखे हैं।
उम्मीद का दामन न छोड़ा करते हैंं।
कोशिश हजार करते फिरते रहते हैं।
माना हम थोड़े कमजोर पड़ जाते हैं।
उम्मीद के साए में कर गुजर जाते हैं।
थोड़ा-थोड़ा करके गागर भरती है।
आशाऐं जीवन में उजाला करती हैं।
रूकते नहीं बस रफ्तार कम होती है।
रूक-रुककर जीवन यात्रा चलती है।
सपने ऐसे अपने पूर्ण रूप से होते हैं।
मानो मंजिल पूर्ण विश्राम माँगती हो।