सपने थोड़े ऊँचे है ।
मेरे सपने थोड़े ऊँचे है
मुझें रास्ता ख़ुद बनाना है
चाहें जमाना हँसे अभी मुझपर
इक रोज़ उसे दिखाना है ।
शहर के लोगों को लगता
हम अंधकार में जीते है
मेहनत और लगन से अपने
अंधकार को मिटाना है ।
एक रोज़ हम मिलेंगे कही
उसी चलती फिरती राहों पे
तुम अपना घर दिखाना
मुझें अपना घर दिखाना है ।
वक़्त किसी का एक जैसा
रहता नही कभी यहाँ
तुमसे मिलकर बस इतनी सी
बातें तुम्हें बताना है ।
-हसीब अनवर