सपना मेरे मन की परिकल्पना
सपनों के खग उड़ा रहा था
दूर गगन में पंख पसारे
भोर हुई तो किरण बता गयी
अरे तेरे खग तो उड़ गए सारे
क्षण एक की महिमा है लोचन की
पग हवा में होते मन अनन्त में पहुंचे
स्वप्न सहारे सुर-प्रासाद में पहुंचे
और मन बोला कि मिल गये तारे
सपनों के खग उड़ा रहा था
दूर गगन में पंख पसारे
मन्द मन्द मुस्काती परियां
नृत्य करें कंचन आंगन में
मन का मोर भोर
विभोर हर्षित होए
स्वर्णांंग के कण कण से
सपनों के खग उड़ा रहा था
दूर गगन में पंख पसारे
श्रृंगार सुसज्जित सजी माधुरी
नैन सुनैना से बात करे
कौन कहाँ का है ये प्राणी जो
और अधिक पाने का प्रयास करे
सपनों के खग उड़ा रहा था
दूर गगन में पंख पसारे
कभी सोम सरोवर
कभी स्वर्ण सिंहासन
कभी निहारे अलका को
देख मनोला उड़ उड़ डोला
पारिजात के वृक्ष तले
सपनों के खग उड़ा रहा था
दूर गगन में पंख पसारे
तन सोया था मन जागे
मन उड़न खटोला उड़ जाए
दूर दृश्य अनन्त गगन में
सुरनगरी के द्वारे द्वारे
सपनों के खग उड़ा रहा था
दूर गगन में पंख पसारे
भोर जगे ज्यों नैन खुले
देख बिछौना देह तले
देख नीलाम्बर मन में
सौ विचार जगहें खाली
मुठ्ठी मन भरा हुआ
कुछ स्मृति याद रही
कुछ सवेरे भूल गए
सपनों के खग उड़ा रहा था
दूर गगन में पंख पसारे
भोर हुई तो किरण बता गयी
तेरे खग तो उड़ गये सारे