“सन्धि विच्छेद”
“सन्धि विच्छेद”
“बचपन के वो संधि विच्छेद के अध्याय,
बड़े ध्यान से अध्यापक हमें पढ़ाते थे ,
स्वर , व्यजन, विसर्ग जैसी सन्धियाँ पढ़कर
इनमें विच्छेद करना सिखाते थे l
दो वर्णों में मिलावट से विकार होता था ,
वर्णों के मिलन से संधि का संबंध प्रगाढ़ होता था
तीन प्रकार की सन्धियाँ उनमें वर्णों की मिलावट थी ,
मिलावट ऐसी जिनमे सन्धियों की टकराहट थी ,
ऐसी संधियों की बनावट और विच्छेदों में नित्य
युद्ध कराते थे ,
एक समय था जब अध्यापक सन्धियाँ पढ़ाकर,
इनमें विच्छेद करना सिखाते थे l
अब समय बदल गया , संधियों के भाव बदल गए,
रिश्ते चलते तलवार की धार ,सन्धियों के ताव बदल गए
ताव बिगड़े , जज्बात बिगड़े , संधियों में अलगाव होने लगा
विच्छेद होने लगे तेज , विसर्ग बने सर्प , संधियों में तनाव होने लगा ,
सोचता नीरज ,
शायद वो सन्धियाँ और विच्छेद के अध्याय अलग थे , जो हमें अध्यापक सिखाते थे ,
रिश्तों की सन्धियों में विच्छेद करे , ऐसा ज्ञान नहीं पढ़ाते थे
नीरज कुमार सोनी
“जय श्री महाकाल”