“सन्तुलन एक मानसिकता”
【सन्तुलन एक मानसिकता】
••••••••••••••••••••••
हम सभी को भलीभांति रूप से अवगत होना होगा कि किसी भी वस्तु, रिश्ते,क्रियाकलाप,आलाप,व्याप इत्यादि में सन्तुलन बनाये रखना जीवन में कितना अधिक महत्वपूर्ण हैं।यकीन मानिये सन्तुलन जीवन में एक वह नींव है जिसपर भिन्न भिन्न प्रकार के जटिल से जटिल भार,व्यवहार,आचार, विचार,सांसारिक उपचार को टिकाया जा सकता है और प्रसन्नतापूर्वक निर्वाह किया जा सकता है।हमारे इर्दगिर्द ऐसी तमाम बातें आ ही जाती है जहां पर हमें निश्चय करना पड़ता है।यदि उस स्थिति में हम अहम कदम नहीं उठाते और अपने सन्तुलन को खो देते हैं तब उस सन्तुलन के खोने के साथ ही साथ बहुत सी आवश्यक चीजें भी खो देते हैं।
आइये तुलनात्मक रूप से सन्तुलन को मैं आपके समक्ष उदाहरण के तौर पर परिभाषित करने के लिए न्यून प्रयास करता हूं।जिस प्रकार पृथ्वी पर जीव निर्जीव सभी प्रकार की विभिन्न वस्तुएं स्थापित है।यदि पृथ्वी पर अत्यधिक रूप से उथल पुथल की जाएगी और बिना परिणाम की चिंता किये निरन्तर तूल दिया जाता रहेगा तब कहीं न कहीं सन्तुलन के सापेक्ष खिलवाड़ होगा और पृथ्वी डगमगा जाएगी।पृथ्वी पर अनियंत्रित क्रियाकलापों के चलते स्वाभाविक रूप से विपदा आएंगी जोकि बहुत ही हानि का विषय होगा।इसी के समकक्ष रिश्तें भी होते हैं।जी हां रिश्तों में भी सन्तुलन की एहमियत ठीक पृथ्वी के सन्तुलन जैसी ही होती है।
कहीं न कहीं आये दिन देखने मे आता है कि बढ़ते दायरे में तमाम प्रकार के रिश्तें बन रहे है और बिगड़ भी रहे हैं।फलस्वरूप ह्रदय पर आघात भी हो रहे हैं और आपसी ह्रदय पर वास भी हो रहे हैं।मेरी स्वयं की अवधारणा है यदि हम सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे है तब हमारा उद्देश्य सिर्फ़ इतना होना चाहिए कि हम सभी वर्गों सभी तबकों सभी प्रकार के लोगो से जुड़े उनसे संवाद करें ताकि तमाम बातें एक दूसरे से सीखने को मिलें।बशर्ते सिर्फ वाज़िब चीजे ही सीखने का उद्देश्य ज़ेहन में लेकर चलें।मैं समझता हूं ऐसा निश्चय करने से आगे चलकर कोई समस्या उत्पन्न नहीं होगी।कभी कभी पता चलता है हम अप्रत्यक्षता की स्वतंत्रता में इतना विलीन हो जाते हैं कि अपने सगे सम्बन्धियों को ताक में रख दिया करते हैं जोकि शर्मनाक है और बेहद
अफ़सोसजनक बात भी है।वर्तमान में उपरोक्त विषय बहुत ही फलफूल रहा है इस विषय को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।एक अत्यंत संवेदनशील रार को मैं इस विषय के माध्यम से उजागर करना चाहूंगा जो कि वास्तव में किसी रिश्ते के लिए बहुत सटीक और दो टूक साबित होगा और सकारत्मक तौर पर महत्वपूर्ण भी होगा।कुछ रिश्ते जो बरक़रार है जिनमे आपसी प्रेम भाव और सच्चा प्यार है लेकिन सोशल मीडिया की चकाचौंध में इस प्रकार के अटूट रिश्तों में भी कहीं न कहीं अनबन हो ही जाती है जिसका कारण सिर्फ यही रहा होता है कि हम अपने किसी प्रिय को भूलकर किसी चमकती चीज यानि सोशल मीडिया पर इतना खो जाते है कि हमें अपने इष्ट अपने सगे को समय देना उससे प्रेमभाव साझा करना याद ही नहीं रहता जोकि रिश्ते में दरार का कारण बनता चला जाता है।एक मोड़ ऐसा आता है सारी हदें टूट जाती है और हम वो हार जाते हैं जो हमारा था जिसे हमारी चिंता थी ,हमसे जिसे प्रेम था।
ये कोई काल्पनिक विषय नहीं है ऐसा घटित हो रहा है।हमें इसको गम्भीरता से समझना होगा और सोशल मीडिया पर अगर परिवार बनाना हो तब उस स्थिति में सन्तुलन को ध्यान में रखना होगा ताकि हम अपने रिश्तों को बचाये रख सकें।सोशल मीडिया के रिश्तें “चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात”के समकक्ष है इसके अतिरिक्त कुछ भी औचित्य इसमें समाहित नहीं है।एक लेखक होने के नाते इस सलाह को मैं अपने तक सीमित नहीं रख सकता हूं मैंने गम्भीरता से परिणामस्वरूप इस विषय को समझा और करीब से बात की तह तक जा पाया और इतना ही शोध कर सका कि रिश्तें बेहद ख़ास है बनाये रखें तोड़े नहीं ।बस सीमाएं को समझते हुए और सन्तुलन को मस्तिक्ष में रखकर सकारत्मक मानसिकता से एक दूसरे के विचारों से सीखते रहें जो कि बेहतर भविष्य बेहतर व्यक्तित्व को गढ़ने में निर्माण करने में अत्यधिक भूमिका निभाएगा। ज़र्रे जर्रे ,हर विषयवस्तु,हर रिश्ते में सन्तुलन बनाये रखें कभी बिखरने न दें।पर्याप्त मात्राएं ही हमेशा सम्पूर्ण आहार होती है।अधिकता से कोई भी चीज छलक जाया करती है।रिश्ते बिंदु पर सन्तुलन को लेकर मेरा प्रयास यहीं पर समाप्त करता हूं।
शुभकामनाएं शुभेच्छा! त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी हूं
___अजय “अग्यार