सनातन धर्म।
सनातन धर्म।
सर्वप्राचीन धर्म है सनातन।
धारणा है शुद्ध आत्मा और सदैव शुद्ध मन।
है ईश्वर सच्चिदानन्द।
सत,चित और आनन्द,
यही सनातन परमानन्द।
कबीर,मीरा,रविदास
और तुलसी आदि सन्त।
जिनकी सत्य-वाणी का
नहीं होता कभी अंत।
पांच हज़ार- सात हजार
सनातन धर्म पुराना।
नहीं बदलते गुण इसके
आए चाहे कोई जमाना ।
मोक्ष धारणा, प्राप्ति का
विकसित इसमें पूर्ण विज्ञान।
कर्म से मोक्ष तक का पूर्ण ज्ञान।
बने सनातन से मनुष्य महान ।
शिव,विष्णु,गणेश,दुर्गा और
सूर्य ईश की होती पूजा।
कर्म से भक्ति ही पहला मार्ग और यही मार्ग दूजा।
मिलता इससे सदैव यश।
मिटता जीव का अपयश
ज्ञान सत्य का और प्राप्त सत्य यश।
सनातन धर्म जिसका,
न आदि न ही अंत।
इसके पालन से बनता
मनुष्य,मनुष्य से सन्त।
सत्य,अहिंसा,त्याग, परोपकार,
सनातन धर्म के मंत्र मूल।
धारे इसे जीवन में अपने,
न हो इसमें कोई भी भूल
निर्मित करो हे मनुष्य,
हर वस्तु ईश्वर का दर्शन।
शुद्ध कर्म,विचार औऱ
निर्मित करो शुद्ध मन।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
द्वारका,नई दिल्ली-78