सनम की शिकारी नजरें…
बड़ी शिकारी नजरें हैं सनम आपकी,
झाड़ियों में छिपे तीतर को भी मार देते हो,
शिकार करने का तुम्हारा ये नायाब तरीका है,
जान से मारते हो और मुँह प्यारी आहें भरवा देते हो,
पहाड़ों को भी मसलते हो ऐसे जैसे रुई के गोले हों,
साँप का जहर निकालकर ही सनम दम लेते हो,
गुफाओं से शहद के प्याले भर लाते हो,
लबों पर लगाकर उसे लबों से ही पी लेते हो,
खोल देते हो जिस्म की हर बंद अंगड़ाई को,
घोंपकर खंजर जिस्म के दो फाड़ कर देते हो,
तरकस से निकालते हो तीर और छाती में मार देते है,
साँसे ऊपर चढ़ाकर स्वर्ग के दर्शन करा देते हो,
प्यासे पपीहे की प्यास पानी से बुझा देते हो,
पीछा करते-करते पसीना-पसीना हो जाते हो,
बड़ी शिकारी नजरें हैं सनम आपकी,
शिकार को देखते हो और मरने की प्यास बड़ा देते हो।।
prAstya……(प्रशांत सोलंकी)