सद्गुरु
——————-कुंडलिया———————
——————–सद्गुरु ———————–
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मिलता गुरु पद रज जिन्हें , धन्य है वही लोग
पा जाते हैं मुक्ति वे , मिटता है भवरोग
मिटता है भवरोग , सहज ही हरि पद पाते
हैं समाज के लोग , सभी उनके गुण गाते
गुरु पद रज से दिव्य, कमल अंतर में खिलता
रहे सर्वदा साथ , वही धन गुरु से मिलता
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गुरु पद रज से जब तिलक , किए विवेकानंद
तब पाते हैं जगत में , वे अतिशय आनंद
ववे अतिशय आनंद , शिकागो जाकर पाते
दीप्तिमान हो स्वयं , दीप्ति जग में फैलाते
उसको कभी न व्याप, सकेगा काम, क्रोध, मद
जिसके उर में वास , किया है अवधू गुरु पद
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अवध किशोर अवधू
ग्राम – वरवाँ ( रकबा राजा)
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जनपद – कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
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