सदा साथ रहना साथिया
अपने जीवन साथी से ये चाह रखना
सदा साथ रहना साथिया,
कितना पवित्र भाव है,
पर ये भाव अपने जीवन साथी में भी हो
तो और भी अच्छा है।
पर ये विचार करने की जरूरत है
साथ रहने की चाहत के प्रति
अपनी भी तो कुछ जिम्मेदारी है,
सिर्फ दूसरे को ही जिम्मेदार समझना
ईमानदार सोच नहीं है
साथ रहना सिर्फ कहने से नहीं होता
एक दूसरे को समझना सबसे जरूरी है
उसके हालात को पढ़ना जरूरी है
साथ रहने के लिए दिल से जुड़ना जरूरी है
ईर्ष्या, अभिमान से बचना जरूरी है
एक दूजे में रमना जरुरी है।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश