हमेशा फूँक कर पग मैं चली हूँ
हमेशा फूँक कर पग मैं चली हूँ
उलझ हर बार पर फिर भी गिरी हूँ
न चारागर न हूँ कोई दवा मैं
मिटाना दर्द अपना जानती हूँ
जला जो रात दिन मैं हूँ दिया वो
न सूरज चाँद हूँ पर रोशनी हूँ
परखना है मुझे अपने परों को
उड़ाने भरना मैं भी जानती हूँ
सबक पेड़ों से सीखा है ये मैंने
लदी हूँ जब कभी फौरन झुकी हूँ
लिखा है जो लकीरों में हमारी
मिलेगा बस वही ये जानती हूँ
कलम से करती रहती “अर्चना’ मैं
सजाती शब्दों से ही आरती हूँ
21-4-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद