सदा ज्ञान जल तैर रूप माया का जाया
जाया करवा-चौथ व्रत, रख देती उपदेश।
फिक्र कि अगले जनम में ,पुनि फँस गया बृजेश।।
पुनि फँस गया बृजेश, पुनः जयमाला आयी।
हाय ! हमारे अग्र, बुड्ढिया ताल बजाई।।
कह “नायक” कविराय, मुक्त बन, तज जग-साया।
सदा ज्ञान-जल तैर, रूप माया का जाया।।
जाया=पत्नी
👉 उक्त कुंडलिया को मेरी कृति “जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह के द्वितीय संस्करण में पृष्ठ संख्या 80 पर पढ़ा जा सकता है।
👉”जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह का द्वितीय संस्करण अमेजन एवं फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।