सदभावना
दिनांक -04-12-2018
दिवस – मंगलवार
विधा – पद्य रचना (कविता)
ज्ञान के प्रकाश में हम सभी करें स्वविवेक का आदर।
यही है प्रार्थना बस मेरी आप सभी से सविनय सादर।
जगत की सेवा करें हम तथा खोज स्वयं की करें।
प्रेम परमात्मा से करके भवसागर से हम सब तरें ।
आत्मान्वेषण कर दोष स्वयं में ही ढ़ूंढ़ें हम सब हमारे।
अन्य के अधिकारों की रक्षा खुद के कर्त्तव्य का ध्यान रखें सारे।
उपयोगी हों सबके लिए बदले में हमें किसी से न कुछ भी चाहिए।
इस सुन्दरतम विश्व वाटिका की बस खाद आप केवल बन जाईए।
मैं नहीं कुछ, मेरा नहीं कुछ, मुझे न कुछ भी चाहिए।
सिर्फ एक प्रभु ही हैं मेरे, उनसे भी कुछ नहीं चाहिए।
#स्वरचित_स्वप्रमाणित_मौलिक*
अजय कुमार पारीक’अकिंचन’
जयपुर (राजस्थान)