सत्संगति
सत्संगति
सत्संगति जीवन बनाए, और दिलाए नाम
माता-पिता का मान बढ़ाएं, मिले उन्हें सम्मान ।
मानव की पहचान में, इसका बड़ा है नाम
भला बुरा कहलाने में, आए बड़ी यह काम
कुसंगति से पनपे ईष्या, और करे बदनाम
जीवन दूभर हो जाए, चैन मिले ना आराम ।।
बचपन में एक बालक को, होता नहीं है ज्ञान
संग खेले जो मिलजुल कर, लेता साथी उसे मान।
खेलकूद की क्रीड़ा से, मिलती है उसको जान
मिलता ना कुछ पल साथी से, हो जाता बेजान ।
इस संगत का फायदा, नहीं कोई नुकसान
समय बिताए साथ में, सहपाठी उसे मान ।।
सत्संगति देती हमको, अध्यात्म का ज्ञान
ज्ञानी गुरु अगर मिल जाए, दूर रहे अज्ञान ।
सज्जन संगति से मिले, सदा हमें सम्मान
दुर्जन संग दुर्भाग्य मिले, सदा मिले अपमान ।
दया भावना और करुणा, खुशियां और सम्मान
अच्छी संगत के कारण ही, मिली हमें है दान ।।
कुसंगति में रहकर बाल्मीकि ने, उत्पात खूब मचाया
सप्त ऋषि के संग में आकर, महर्षि कहलाया ।
ध्यान साधना सत्संग कारण, जीवन सफल बनाया
महाकाव्य रामायण लिखकर, जग में नाम कमाया ।
सत्संगति की महिमा अपार, आज समझ में आया
समझा जिसने सत्संग सार, जीवन अंधकार मिटाया ।।
कुसंगति देती आदत चोरी की, झूठ कपट अज्ञान
घर – परिवार बर्बाद हो जाता, होता ना अपनों का मान ।
रोजगार भी मिल नहीं पाता, मिलता नहीं सम्मान
गद्दारी को जन्म यह देती, आतंकवाद पहचान ।
प्रगति देश की थम जाती है, अपने गवाएँ जान
दीमक सी फैले ये कुसंगति, देती सदा अपमान।।
दुर्योधन संग कर्ण को मिल गई, कुसंगति की छाया
शकुनी संग दुर्योधन सीखा, छल कपट की माया ।
सत्संगती में बीरबल की, अकबर ने नाम कमाया
अर्जुन ने कृष्ण संग रहकर, धर्म ज्ञान है पाया ।
सत्संगति को तुम पहचानो, जीवन अनमोल है पाया
कुसंगति को आज ही तज दो, कवि अरविंद ने समझाया ।।
सत्संगति जीवन बनाए, और दिलाए नाम
माता-पिता का मान बढ़ाएं, मिले उन्हें सम्मान ।
मानव की पहचान में, इसका बड़ा है नाम
भला बुरा कहलाने में, आए बड़ी यह काम
कुसंगति से पनपे ईष्या, और करे बदनाम
जीवन दूभर हो जाए, चैन मिले ना आराम ।।
बचपन में एक बालक को, होता नहीं है ज्ञान
संग खेले जो मिलजुल कर, लेता साथी उसे मान।
खेलकूद की क्रीड़ा से, मिलती है उसको जान
मिलता ना कुछ पल साथी से, हो जाता बेजान ।
इस संगत का फायदा, नहीं कोई नुकसान
समय बिताए साथ में, सहपाठी उसे मान ।।
सत्संगति देती हमको, अध्यात्म का ज्ञान
ज्ञानी गुरु अगर मिल जाए, दूर रहे अज्ञान ।
सज्जन संगति से मिले, सदा हमें सम्मान
दुर्जन संग दुर्भाग्य मिले, सदा मिले अपमान ।
दया भावना और करुणा, खुशियां और सम्मान
अच्छी संगत के कारण ही, मिली हमें है दान ।।
कुसंगति में रहकर बाल्मीकि ने, उत्पात खूब मचाया
सप्त ऋषि के संग में आकर, महर्षि कहलाया ।
ध्यान साधना सत्संग कारण, जीवन सफल बनाया
महाकाव्य रामायण लिखकर, जग में नाम कमाया ।
सत्संगति की महिमा अपार, आज समझ में आया
समझा जिसने सत्संग सार, जीवन अंधकार मिटाया ।।
कुसंगति देती आदत चोरी की, झूठ कपट अज्ञान
घर – परिवार बर्बाद हो जाता, होता ना अपनों का मान ।
रोजगार भी मिल नहीं पाता, मिलता नहीं सम्मान
गद्दारी को जन्म यह देती, आतंकवाद पहचान ।
प्रगति देश की थम जाती है, अपने गवाएँ जान
दीमक सी फैले ये कुसंगति, देती सदा अपमान।।
दुर्योधन संग कर्ण को मिल गई, कुसंगति की छाया
शकुनी संग दुर्योधन सीखा, छल कपट की माया ।
सत्संगती में बीरबल की, अकबर ने नाम कमाया
अर्जुन ने कृष्ण संग रहकर, धर्म ज्ञान है पाया ।
सत्संगति को तुम पहचानो, जीवन अनमोल है पाया
कुसंगति को आज ही तज दो, कवि अरविंद ने समझाया ।।