सत्य
ईश्वर ही परम सत्य है,शाश्वत है अविनाशी है।
निराकार ज्योति-बिन्दु है,परम शक्ति विश्वासी है।।
सत्य आनंद,शुभ,पवित्र,सतत्-शांति का गागर है।
उच्चतम-कल्याणकारी,सुखद स्नेह का सागर है।।
सच पर धूल नहीं चढ़ती, सत्य सत्य ही रहता है।
सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म है,ब्रह्म हृदय में बहता है।।
एक केवल सत्य ही तो,बाह्य भीतर एक सा है।
सच मानकर विश्वास कर,देह भीतर ही बसा है।।
भव-बन्ध से निर्मुक्त है,जो सत्य है वो शुद्ध है।
ब्रह्माण्डरूपी लहरियाँ,चैतन्यघन में बुद्ध है।।
निरपेक्ष दृष्टा सर्व का,सत्यपंथी अक्षुब्ध है।
पावन परम निज आत्म का,अंत: वृत्ति में लुब्ध है।
भयभीत वह होता नहीं,जो सत्य को जानता है।
अपना पराया भेद तज, सत्य को ही मानता है।
-लक्ष्मी सिंह