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17 Nov 2020 · 2 min read

सत्य, संत, शास्त्र और सत्संग

आदमी पूरे जीवन सत्य की अपने हिसाब से व्याख्या करता रहता है । सत-संत, शास्त्र-सत्संग को अस्वीकार कर देने वाला तथाकथित नास्तिक इसी वजह से सत्संग और कथा से दूर रहना चाहता है ।इसीलिए सत्य के मार्ग पर नहीं चलना चाहता है ,इसीलिए सत्य में स्थिर होने के लिए आत्म चिंतन नहीं करता है , कहीं जीवन के प्रति बनाई हुई उसकी सोच खंडित- विखंडित ना हो जाये।

आदमी जैसा भी जीवन जीना चाहता है , उसके पक्ष में बहुत तर्क जुटा लेता है । तुम झूठे हो तो मन कहेगा कि सारी दुनिया झूठी है, सब झूठ से ही काम चला लेते हैं । तुम बेईमान हो, तो मन कहेगा कि सारा संसार ही बेईमान है । यहाँ ईमानदार तो भूखे मर जाते हैं।इस प्रकार से मन हमेशा गलत तर्क देकर मनुष्य को भटकाता रहता है ।समय रहते ही इसे समझ लेना चाहिए।और अपनी दिशा को सही करके अपनी दशा को सुधार लेना चाहिए।
मन रास्ता निकालने में बड़ा कुशल है । ये दुनिया के लोग तो तुम्हारा कुछ ना बिगाड़ पाएंगे । यह मन तो जन्मों-जन्मों से तुम्हें धोखा दे रहा है । जीवन की गलत व्याख्या कर-करके बार-बार उन्हीं गड्ढ़ों में गिरा रहा है । तुम बड़े हैरान होवोगे कि इस मन ने , गलत आचरण के पक्ष में तर्क देकर तुम्हें जितना बर्बाद किया है,पूरी दुनिया मिलकर भी तुम्हें उतना बर्बाद नहीं कर सकती है । और न ही कोइ और बर्बाद कर ही सकता है । तुम्हें कोई बर्बाद कर भी नहीं रहा है , तुम्हें जब भी भटकाया है ,तो तुम्हारे मन ने ही ,और तुम उसी मन के भटकावे में आकर 84लाख योनियों में भटकते हुए ,मनुष्य शरीर तक की यात्रा कर रहे हो ,यदि इस बार भी तुम मन के बहकावे में आ गए तो पुनः ,चौरासी के चक्कर में भटकना ही पड़ेगा , यदि मनुष्य शरीर में इतने कष्ट झेलने पड़ते हैं तो अन्य शरीरों में तो निर्वस्त्र रहकर ,बिना किसी संसाधन के अनेका नेक प्रकार के कष्ट झेलने ही पड़ेंगे , इसलिए सावधान हो जाओ ,जो शेष जीवन बचा हुआ है ,उसको भगवत्प्राप्ति के तरफ मोड़ने का प्रयास करते रहिए ,इसी में मानव शरीर की सार्थकता है ।
सही दिशा में जीवन व्यतीत करने के लिए इन चार का आश्रय किये बिना, जीवन का उद्देश्य और सही गलत का निर्णय कभी ना कर पाओगे ।
” सत्य, संत, शास्त्र और सत्संग!!”

Language: Hindi
Tag: लेख
431 Views
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