सत्य” नहीं “अर्धसत्य”
ये “सत्य” नहीं “अर्धसत्य” है…
बरसों से “कलम” भी बिकती है
“कलमकार” भी बिकता है…
तभी तो सरेबाज़ार
“विद्या की किताबें” बिकती हैं
सुबह-सुबह “अखबार” बिकता है…
दुनिया ज़रूर पलट कर पूछती
“पत्रकारों” का हाल
पर सच तो ये है…
कोठे की मुन्नीबाई की तरह
अब पत्रकार बिकता है…
Suneel Pushkarna