सत्य जीवन का
गीतिका…4
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गीतिका
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(आधार छंद चौपाई , समांत आना, अपदांत )
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आता जब उसका परवाना ।
चलता कोई नहीं बहाना ।।
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पात डाल से जैसे टूटे ।
ऎसे ही सबको झर जाना ।।
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ओस बिन्दु सा जीवन है ये ।
कुछ पल दमके क्या इतराना ।।
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रुकते नहीं नयन में आँसू ।
बहुत कठिन इनको पी पाना ।।
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एक-एक पल बीत रहा है ।
हर पल जीवन हुआ पुराना ।।
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बिछुड़े मेले में ज्यों कोई ।
ऎसे सबको खोना पाना ।।
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दागों भरी चुनरिया कोरी ।
मुश्किल इसके दाग छुड़ाना ।।
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तेल खत्म जल जाती बाती ।
बुझे दीप को कठिन जलाना ।।
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‘ज्योति’ सरीखा जल जाना है ।
फिर जलने को जग में आना ।।
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-महेश जैन ‘ज्योति’