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28 May 2023 · 1 min read

सत्य जीवन का

गीतिका…4
————-
गीतिका
-०-०-०-०-०-०-०-
(आधार छंद चौपाई , समांत आना, अपदांत )
०००००
आता जब उसका परवाना ।
चलता कोई नहीं बहाना ।।
*
पात डाल से जैसे टूटे ।
ऎसे ही सबको झर जाना ।।
*
ओस बिन्दु सा जीवन है ये ।
कुछ पल दमके क्या इतराना ।।
*
रुकते नहीं नयन में आँसू ।
बहुत कठिन इनको पी पाना ।।
*
एक-एक पल बीत रहा है ।
हर पल जीवन हुआ पुराना ।।
*
बिछुड़े मेले में ज्यों कोई ।
ऎसे सबको खोना पाना ।।
*
दागों भरी चुनरिया कोरी ।
मुश्किल इसके दाग छुड़ाना ।।
*
तेल खत्म ‌जल जाती बाती ।
बुझे दीप को कठिन जलाना ।।
*
‘ज्योति’ सरीखा जल जाना है ।
फिर जलने को जग में आना ।।
*
-महेश जैन ‘ज्योति’

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