सत्य को पहचान
-सत्य को पहचान
खोज कर सत्य को चलने लगा मैं उसके साथ,
मूर्ख मुझे कहे दुनियाऔर कुछ ना आए मेरे हाथ।
मुश्किल हुआ जीना किया जब सच के साथ रहना,
कठिनाई भरा था जीवन बहुत कुछ पडा था सहना।
सत्य को पान कर जब से सब से बोलना मैंने चाह,
बेकार हूं कह कर , छोड़ने लगे कुछ लोग मेरी राह।
सत्य की खोज में ही जीवन का अस्तित्व छुपा था,
मैं कौन हूं,कहां से आया,कर्म क्या करुं? यह प्रश्न था।
जीव और मानव में फर्क बुद्धि से सजा था हर इंसान,
पशुवत व्यवहार करे सबसे और कहे स्वयं को महान।
सोचे -समझें क्यूं ना करें अच्छे कर्म, मन में ले यह ठान
सदा सद्व्यवहार करें जीवन में मिटा मन का अज्ञान,
मानव जीवन है अनमोल सबको देख रहा है भगवान ।
-सीमा गुप्ता,अलवर राजस्थान