सत्य की राह?
कभी मानव बन कर जिया है तुमने?——-कभी गरीब को प्रेम से छुआ है तुमने?——ईरषा ,द्ववेष में, हमेशा जिया करते हो।——-कभी मानव होने का अहसास किया है तुमने।?
झूठी कहानी गढ़ कर,सम्मान पा लिया है। कभी अंतर मन से पूछा है तुमने?———भीड़ का हिस्सा बनने का भूत सवार रहता है।——-कभी अलग हट कर , कुछ सोचा है तुमने।–लकीर के फकीर बन कर जीते हो तुम। कभी आत्म मंथन किया है तुमने?तुम झूठ मे सदा,अनवरत बहते रहते हो!–कभी सत्य की राह पर पग बढ़ाया है तुमने?