सत्य की जीत
सत्य की जीत ( नवगीत शैली)
समय हमेशा ही बतलाता
बच न सके दुष्ट कलंका।
सदा सुपथ पर बढ़ना आगे
मन मत करना आशंका।
सत्य हमेशा होता विजयी
औ असत्य मुॅंहकी खाता।
पुण्य चमकता है सूरज सा
पाप अॅंधेरा ही पाता।
सदा चलें सत्पथ हम सारे
करें नहीं मंजिल शंका।
जिसने जग में अन्याय किया
गया गर्त में रावन सा।
पतित सदा होता पतनोन्मुख
रख मन को तुम पावन सा।
अहंकार हारा हर युग में
बजता सच का ही डंका।
कामी ,पापी रावण के सिर
अहंकार बादल छाया।
आह लगी थी जब जनमन की
काम नहीं आयी माया।
जले लंक के सब परकोटे
लाख समान जली लंका।।
डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली।