सत्य की खोज
“सत्य की खोज” मनुज का,है अद्भुत प्रयास।
अंधकार से निकलकर,पाता सुखद प्रकाश।।
चिंतन-मंथन कीजिए , अन्तर्मन से रोज ।
दिव्य दृष्टि होगी प्रखर,सहज सत्य की खोज ।।
पाप तिमिर सब मिट गया, फैला सत्य प्रकाश।
आततायी प्रकृति का, करके समूल नाश।।
सत्य सनातन प्रेम है, दिव्य अलौकिक द्वार।
प्रेम सिक्त उर में बहे, निर्झर निर्मल धार।।
अटल सत्य जीवन मरण,कोई सका न रोक।
जो आया जाना उसे, उचित नहीं है शोक।।
सत्य समर संग्राम सम, स्वयं सका जो जीत।
साहस सौरभ शोभता,सुखमय स्वर संगीत।।
सत्य कर्म विश्वास से, जीवन हो खुशहाल ।
नित्य-नियम से कर्म कर,नहीं काम को टाल।।
सत्य-कर्म पर जो अडिग,रखता मन विश्वास।
वह जग में यश-कीर्ति से, लिख जाता इतिहास।।
सदा विजय हो सत्य की, हो असत्य की हार।
रहे तनिक भी भय नहीं, साहस जिसके द्वार।।
सत्य,शांति,संकल्प से,सफल सुखद हो साल।
स्नेह सुमन सपना शगुन,सजे सृजन के डाल।।
सत्य राह छोड़े नहीं, पड़े समय का फेर।
सत्य कभी छुपता नहीं,लगती थोड़ी देर।।
मौन सत्य का द्वार है, दीप्तिमान-सा भोर।
फेके जो लम्बी यहाँ, कर देता है बोर।।
रंग सत्य का एक है,झूठे रंग हज़ार।
तो फिर भाये क्यों नहीं,झूठों का व्यापार।।
इस कलयुग में झूठ को, करते सब स्वीकार।
अब हर पल हर मोड़ पर,होता सत्य शिकार।।
सत्य भूल कर झूठ को, लिखता अब अखबार।
बाँध लिया है बेड़ियों,इसके उर उद्गार।।
सत्य बचा है नाम का,बहुत अधिक है झूठ।
धर्म-कर्म को त्याग कर,मनुज बना है ठूठ।।
-लक्ष्मी सिंह