सत्य की खोज
पथ भ्रमित हो रहा,मन विकल हो रहा
खो रहा अब अंतर्मन,तन विफल हो रहा
घिर रहा मन नित निराशाओं की और
अवचेतन सा मन लिए घूम रहा चहूऔर
जिंदगी है अजबूझ पहेली,कभी सरल सुरीली है
नित जीवन में नए संघर्ष,जिंदगी की यही रीति है
अपनों में अब अपनापन धीरे – धीरे खो रहा
नही साथ कोई निभाने को ,सब खुद में रो रहा
दुविधा और शंकाओ से घिरा है सबका तन
सत्य का अस्तित्व खो रहा ,जीत रहा झूठा मन
दया करुणा सहानुभूति का हो रहा है लोप
अपनापन का चोला ओढ़े पीठ पीछे खंजर हैं घोप
सत्य की खोज बाहर मत खोज ,ढूंढो अपने अंदर
ईश्वर ही है सत्य की खोज, रहते हर जीव के अंदर
ममता रानी
रामगढ़,दुमका (झारखंड )