सत्य की खोज में।
सत्य की खोज में,
तू क्यों दर दर भटकता है।
सत्य तो है तेरे अंदर,
तू क्यों न स्वयं को खोजता है।।
प्रकृति के कण कण में,
सत्य समाया है।
दोष न किसी का,
तू ही न देख पाया है।।
स्वयं को मुक्त कर,
तू हर बंधन से।
तू स्वयं ही आ जायेगा,
सत्य की संगत में।।
जीवन जो तू जी रहा है,
ये बस एक कहानी है।
मृत्यु ही सत्य है,
जो सबको एक दिन आनी है।।
जानें कितने निकले,
सत्य की खोज में।
कुछ आए कुछ खो गए,
इसके शोर में।।
व्यर्थ का जीवन,
तू जी रहा है।
माया, मोह में,
तू स्वयं को खो रहा है।।
तू मिलके देख,
स्वयं की आत्मा से।
तेरा मिलन हो जायेगा,
सत्य,परमात्मा से।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ