सत्य कहूँ क्या ?
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सत्य कहूँ तो जग छूटे,
अपने अपनों से रूठे।
नहीं सीख पाए हम ,
मीठे झूठ का हुनर।
सदा सत्य बोल दूँ ,
तो अपने हमसे रूठे।
सत्य कहूँ…………..1
सांच पड़ गया भारी,
छीना बहुत से रिश्ते।
जो भी मेरे अजीज थे,
दिल उनके हमसे टूटे।
सत्य कहूँ……………2
हुआ बन्द मैं बटुए में,
जो बोला रहा हूँ सच।
एकटक स्वयं को देखूं,
नेत्र भरे दम भी घूटे।
सत्य कहूँ…………..3
कहूँ साँच अकेले ही ,
नहीं दे पाता प्रमाण।
बाहुल्यता जिसकी रही,
उसमें बने हम झूठे।
सत्य कहूँ……………4
जो मेरी आंखों ने देखा ,
और देखा चुप बहुतों ने।
उसे अकेले कैसे कह दूँ,
सोच अन्तः अश्रु है फूटे।
सत्य कहूँ …………..5
मैंने सोचा चौबीस कैरट,
होता है एकदम खरा।
पर समाज में चल रहा,
है मिलावट के बलबूते।
सत्य कहूँ……………6
सत्य विजय पाता ही है ,
इतिहास होता है गवाह।
कुछ भी हो मैं सत्य कहूँगा,
चाहे दुनिया हमको लूटे।
सत्य कहूँ ……………7
●◆★अशोक शर्मा ★◆●
(कुशीनगर उ.प्र.)