सत्य और मिथ्या में अन्तर
सत्य और मिथ्या में अन्तर, खोजी खोज न पाया।
सत्य ब्रह्म की ही पसरी है, जग में मिथ्या माया ।।
मायापति की सृष्टि जगत को, मिथ्या लोग बताते।
मायापति है ब्रह्म, ब्रह्म का, सुर-नर-मुनि गुण गाते।।
इस रहस्य ने ही है जग को, भलीभाॅंति भरमाया।
सत्य और मिथ्या में अन्तर, खोजी खोज न पाया।।
भ्रमित दार्शनिक चिन्तक सारे, जाने क्या-क्या कहते।
सत्योद्घाटन हेतु निरन्तर, खोज में लगे रहते।।
वेदों-उपनिषदों की वाणी, पढ़ पाठक चकराया।
सत्य और मिथ्या में अन्तर, खोजी खोज न पाया।।
सत्य नींव, आनन्द शिखर है, यह वेदों की वाणी।
नेति-नेति से विरति नहीं पर, वाणी जग-कल्याणी।।
ज्ञान-भक्ति की दो राहों पर, चलना गया सुझाया।
सत्य और मिथ्या में अन्तर, खोजी खोज न पाया।।
मंजिल एक, पंथ बहुतेरे, खोज निरन्तर जारी।
हर पथ से मंजिल पाते हैं, सिद्ध पुरुष अवतारी।।
योग मार्ग ने भी साधक को, मंजिल तक पहुॅंचाया।
सत्य और मिथ्या में अन्तर, खोजी खोज न पाया।।
सिवा सत्य के और नहीं कुछ, यह सिद्धों का कहना।
मिथ्या को भी सिद्ध बताते, नित्य सत्य का गहना।।
मिथ्या भी हो गया सत्य जब, सिद्धों ने अपनाया।
सत्य और मिथ्या में अन्तर, खोजी खोज न पाया।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी