सत्याधार का अवसान
सत्य क्यों इतना प्रतीत निष्ठुर है ?
असत्य क्यों इतना प्रतीत मधुर है ?
क्यों सत्य सबसे अलग इतना एकाकी
पड़ गया है ?
क्यों असत्य का साथ देने वालों का गढ़ सा
बन गया है ?
क्यों सत्य पर दमन के सतत् वार हो रहे हैं ?
क्यों असत्य के सर्वसमर्थित वारे न्यारे हो रहे हैं ?
क्यों नीति , आदर्श , संस्कार सब कोरी बातें
होकर रह गई है ?
क्यों स्वार्थ ,लोलुपता, छल-कपट , छद्म ,
जीवन का लक्ष्य बन गई है ?
क्यों पद ,धन ,वैभव , प्राप्ति हेतु चाटुकारिता
जीवन की व्यवहारिकता बन गई है ?
क्यों सत्य निष्ठा , कर्म निष्ठा , धैर्य एवं साहस की परीक्षा हो रही है ?
सत्य की राह क्यों इतनी कंटक युक्त जटिल है ?
असत्य का पथ क्यों इतना निर्बाध सरल है ?
क्या यही कलयुग की पहचान है ?
जिसमें सत्य के आधार का अवसान है ।
या प्रभु की विनाश लीला का पूर्वाभान है ?