सत्यवादी
सत्य की अब खोज कहाँ,भ्रमित मानव विवेक।
भूल स्वयं को देवता,पूजे देव अनेक ।।
सत्य की पहचान नहीं,क्यों नर देह महान।
पेट प्रजनन संग्रह में,उलझ गया इंसान ।।
सत्य नाम भगवान ही,अन्य नहीं कुछ सत्य ।
माया वश होकर सभी, मानत सत्य असत्य।।
जिसने जाना सत्य को,जीवन उसका धन्य ।
सुख सुविधा नहि चाहता,आत्म भाव ही अन्य ।।
सत्य जन्म अरु मृत्यु है,धरा लोक का धर्म।
इनसे बचने सत्य इक,स्वार्थ हीन सत्कर्म ।।
सत्यवाद का आसरा,सफल भक्ति के संग।
कठिनाई सहता रहे,सत्य करे नहि भंग।।
राजेश कौरव सुमित्र