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10 Jun 2023 · 1 min read

सत्यवती हो कविता

सत्यवती हो कविता

सदी के इस दशक में
लिख रहा है हर आदमी कविता
मुक्ति की छटपटाहट में
मुक्ति जाहिल अंधेरों से
भ्रष्टचार के बखेड़ों से,
अन्याय के थपेड़ों से
सुरक्षित रखने तेरी मेरी आजादी के घेरों को।
खेत खलिहान में खटता मजदूर
अपने घर परिवार से दूर
शहरी सड़कों पर
तारकोली काला शीशा-सा गिराता
या फिर मकानों पर मंजिले चढाता.
क्या नहीं आती सोंधी गंध
उन हाथों से
जो बुनते हैं ऐसे निर्माण की कविता
हमारे तुम्हारे सिरों पर आलीशान छत के लिये
क्या तुम्हारी कविता दे सके गी इन्हें
सिर ढकने के लिये छप्पर
या फिर खोखले शब्द जाल
बन कर रहें जायेंगे मुखबिर
लिखनी है कविता तो वह हो सत्यवती
आचरण में और सोच में
तभी तो हो पायेगी गति।

Language: Hindi
96 Views
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